दर्शन, ज्ञान,चारित्र आत्मा का वैभव है -मुनिश्री
भोपाल। दूसरों से प्रशंसा प्राप्त करना सरल है परंतु हमारा मन अपने आपको अच्छा स्वीकार कर ले यह कठिन है। तीर्थ बनाना सरल है लेकिन निजात्मा को तीर्थ बना लेना अत्यन्त कठिन है इसलिये जगत के गमन को छोड़कर निज आत्मा में रमण करो। उक्त आशय के उद्गार आचार्य विद्यासागर महाराज के शिष्य मुनिश्री प्रसाद सागर महाराज चौक धर्मशाला में व्यक्त करते हुये कहा दूसरों के दोष कब तक देखोगे निज के दोषों को देखकर चिंतन करो निज की ओर निहारो। धर्म करना है तो पहले कषायों को छोड़ों जब तक कषायों की लगार लगी है तब तक धर्म प्रकट नहीं होगा। इस देह से धुंआ निकले उससे पहले कषायों का धुंआ निकाल दो।
मुनिश्री शैल सागर महाराज ने कहा कि योग का अर्थ होता है जोड़ना जो योगी होते हैं वह श्रद्धालुओं को संयम, स्वात्मा और स्वाध्याय से जोड़ते हैं। निरग्रंथ मुनि वर्षाकाल में एक ही स्थान पर ठहरकर स्वात्म साधना एवं धर्म प्रभावना करते हैं अहिंसा धर्म का पालन कर वर्षा योग करते हैं। धर्म दया से शुद्ध होता है विशुद्ध भाव है वही धर्म है।
मुनिश्री ने कहा परस्पर में उपकार की भावना रखने वाले व्यक्ति के सभी कार्य स्वयमेव सिद्ध हो जाते हैं। ऐसी भावना करने वाला मनुष्य दुख से मुक्त हो जाता है। इसलिये सदा सभी प्राणियों की भावना का प्रभाव भूतल की प्रकृति पर पड़ता है। इसलिये सदा शुभ भाव रखना।
दर्शन, ज्ञान,चारित्र आत्मा का वैभव है -मुनिश्री
स्टेट न्यूज़ ,धर्म, Jul 27 2019







