यौवन, सुंदरता कब विलीन हो जाएंगी, कुछ पता नहीं -मुनिश्री
ग्वालियर/ यौवन, सुंदरता कब विलीन हो जाएंगी, कुछ पता नहीं। किस मोड़ पर जीवन का अंत हो जाए कुछ निश्चित नहीं। इसलिए समझदारी इसी में है कि जीवन रहते उसे कृतार्थ कर लिया जाए। क्योंकि मनुष्य जीवन का मिलना समुद्र में पड़े रत्न के मिलने से भी अत्यंत कठिन है, फिर उत्तम कुल, समीचीन सोच, उत्तम देश और आत्मकल्याण के परिणाम होना उत्तरोत्तर सब कुछ दुर्लभ है। यह विचार क्रांतिकारी मुनिश्री प्रतीक सागर महाराज ने आज शनिवार को सोनागिर स्थित आचार्यश्री पुष्पदंत सागर सभागृह में धर्मसभा को संबोधित करते हुए कही!
मुनिश्री ने कहा कि जीवन में कभी भयातीत नहीं होना चाहिए। जो भयातीत होता है, वही पाप कार्य करता है। भयातीत पुरुष कभी सत्य नहीं बोल सकता है। भयातीत पुरुष को क्षणभर भी शांति नहीं मिलती है। अशांति का मूल कारण भय ही है। निशंक पुरुष ही सुख का वेदन कर सकता है। निशंक-निर्भय जो होगा वही सत्य बोल सकता है।











