नई पौध को संपत्ति की तरह संस्कार सौंपना भी याद रखें - शास्त्री
इन्दौर । रामकथा केवल तीन घंटे बैठकर श्रवण करने के लिए ही नही हैं। राम, सीता, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न अैर हनुमानजी जैसे व्यक्तित्वों का कोई जोड़ नहीं। रामकथा उस गंगा की तरह है, जो 88 हजार बरसों से भारतीय समाज को भक्ति, मर्यादा और संस्कृति की त्रिवेणी में स्नान करा रही है। गंगोत्री से निकली गंगा भले ही मैली हो गई हो, तुलसी की गंगा आज भी निर्मल और पावन है। रामायण और भागवत-गीता ग्रंथ नही, जीवन जीने के मंत्र है। इस अनमोल खजाने को हमने अब भी बिरासत में नई पौध को नहीं सौंपा, तो आने वाली पीढ़ी हमें माफ नहीं करेगी। हमें सम्पत्ति सौंपने की तो याद रहती है, संस्कार सौंपना क्यों भूल जाते है। राम नाम से बड़ा कोई सत्य नहीं हो सकता, जो जन्म से लेकर मृत्यु तक हमारी जीवन यात्रा में मार्गदर्शन करता आ रहा है और युगों-युगों तक करता रहेगा।
ये प्रेरक विचार हैं आचार्य पं. नारायण शास्त्री के, जो उन्होंने विमानतल मार्ग स्थित सुखदेव नगर के पंचवटी हनुमान मंदिर, सुखदेव वाटिका पर चल रही संगीतमय श्रीराम कथा में राम-रावण युद्ध, राम राज्याभिषेक आदि प्रसंगों की व्याख्या करते हुए व्यक्त किए। कथा में राम राज्याभिषेक का उत्सव भी धूमधाम से मनाया गया। भक्तों ने उत्सव के रूप में होली और दीपावली को एकाकार कर दिया। फूलों की वर्षा, जयघोष और भजनों पर नाचने-थिरकने से लेकर दीपों की कतारों ने सुखदेव वाटिका को थोड़े समय के लिए अयोध्या में बदल दिया था। प्रारंभ में राज्य के स्वास्थ्य मंत्री तुलसी सिलावट, विधायक आकाश विजयवर्गीय, पार्षद भगवान सिंह, राजेश चैहान, पूर्व पार्षद निरंजनसिंह चैहान गुड्डू, अब्दुल रऊफ, जयदीप जैन, आदि ने व्यासपीठ का पूजन किया। संध्या को आरती में ठा. विजयसिंह परिहार, लक्की अवस्थी, संजय दुबे, पार्षद नीता शर्मा, करणी सेना की प्रमुख सुश्री मनजीत सिंह, गीता गौतम, अनिलसिंह परिहार सहित सैकड़ों भक्तों ने भाग लिया। संयोजक सुनील सिंह परिहार ने बताया कि इसके पूर्व आचार्य पं. नारायण शास्त्री के निर्देशन में यज्ञ-हवन के साथ पूर्णाहुति तथा समापन के बाद महाप्रसादी का आयोजन भी संपन्न हुआ।
पं. शास्त्री ने कहा कि आज समाज में नैतिक मूल्यों की सख्त जरूरत है। समय रहते हमने राम और कृष्ण के आदर्शो को अपने आचरण-चरित्र में नहीं उतारा तो नई पीढ़ी हमें कभी माफ नहीं करेगी। रामायण और गीता भारतीय समाज की आदर्श संस्कृति के दर्पण हैं लेकिन विडम्बना है कि रामायण पूजाघरों में लाल कपड़े में बंध कर रह गई और गीता अदालतों में झूठी शपथ लेने के काम आ रही है। हम कथा में तो रोज बैठते हैं, अब कथा को भी अपने अंतर्मन में बैठानें की जरूरत है। विरासत में संपत्ति के साथ संस्कार सौंपे बिना रामराज्य की पुनस्र्थापना संभव नही होगी। रामकथा भी गंगा है, जैसे गंगा में स्नान से पाप क्षय हो जाते हैं वैसे ही रामकथा के श्रवण से भी पाप नष्ट होते हैं। जब तक मन का पाप नहीं मिटेगा, तब तक भौतिक सुखों से भी आनंद नहीं मिल पाएगा। सीता सेवा है तो राम वैराग्य। लक्ष्मण ज्ञान और हनुमान चेतना है। यह पंचवटी जैसा हमारा शरीर होगा तो ही मन, बुद्धि और चित्त में अहंकार का प्रवेष नहीं हो पाएगा। यही रामराज्य का मूल चिंतन है।







