सोशल मीडिया पर मौलिक और सकारात्मक समाचारों का विशेष महत्व-नरहरि

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वर्तमान युग सोशल मीडिया का युग

सोशल मीडिया पर मौलिक और सकारात्मक समाचारों का विशेष महत्व 

इंदौर/ जनसम्पर्क आयुक्त श्री पी. नरहरि ने कहा कि वर्तमान में 70 प्रतिशत युवा (35 वर्ष से कम) समाचार के लिये पूरी तरह सोशल मीडिया पर निर्भर हैं। पहले पत्रकारिता के क्षेत्र में प्रिंट मीडिया का प्रभुत्व था, फिर उसे सोशल मीडिया ने गंभीर चुनौती दी और अब सोशल मीडिया का जमाना आ गया है। डिजिटल मीडिया अर्थात मोबाइल पत्रकारिता के इस युग में हर व्यक्ति पत्रकार है। सोशल मीडिया पर, जो व्यक्ति अपने विचार व्यक्त करता है, वह पत्रकार है। आज के इस डिजिटल युग में हिन्दी भाषा का आधिपत्य बरकरार है। डिजिटल पत्रकारिता में अब लिखने की भी जरूरत नहीं पड़ती है। स्मार्ट फोन में बोल देने से सब टाइप हो जाता है। डिजिटल पत्रकारिता में हिन्दी सहित अनेक भारतीय भाषाओं का पुन: स्मरण हो रहा है, जिसके पास मौलिक विचार हैं, वह किसी को भी सोशल मीडिया पर प्रभावित कर सकता है।

      यह बात आज जनसम्पर्क आयुक्त श्री पी. नरहरि ने देवी अहिल्या विश्वविद्यालय परिसर स्थित जन संचार विभाग की दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय कार्यशाला, जिसका विषय "डिजिटल मीडिया और हिन्दी, संभावनाएं और चुनौतियाँ" में व्यक्त की।

      उन्होंने इस अवसर पर कहा कि हर युग में पत्रकारिता को चुनौती मिलती रही है। परिवर्तन प्रकृति का नियम है। हम आधुनिक तकनीक और खोज की उपेक्षा नहीं कर सकते। हमें जमाने के साथ कदम से कदम मिलाकर चलना होगा। उन्होंने कहा कि हर युग में मौलिक विचारों और मौखिक खोजों का महत्व रहा है। डिजिटल मीडिया पर भी मौलिक विचार ही सफल रहेंगे। मौलिक विचारों पर अध्ययन उपरान्त पाठक अपनी प्रतिक्रिया भी व्यक्त करता है। प्रिंट मीडिया भी अब अपनेआप को सोशल मीडिया से जोड़ने का प्रयास कर रहा है। क्यूआर कोड से प्रिंट मीडिया की खबरें सोशल मीडिया पर भी देखी जा सकती हैं।

      आयुक्त श्री नरहरि ने इस अवसर पर यह भी कहा कि सोशल मीडिया पर कई आयटम तीन-तीन करोड़ लोग पढ़ते हैं। यह सोशल मीडिया के प्रति जनता के रूझान का प्रत्यक्ष उदाहरण है। आजकल ऑनलाइन टीवी चैनल भी शुरू हो गये हैं। डिजिटल मीडिया की सफलता के लिये रचनात्मकता जरूरी है। रचनात्मकता लम्बे समय तक स्थायी रहती है और नकारात्मक विचार स्थायी नहीं होते। जनसम्पर्क मानव व्यवहार का एक रूप है और पत्रकारिता मानव सभ्यता का एक पड़ाव है और जनता से संवाद भी है। पत्रकारिता के लिये अध्ययन के साथ-साथ अनुभव भी होना जरूरी है।     

      आज यह संगोष्ठी निश्चित रूप से प्रासंगिक विषयों पर आयोजित की गई है। देवी अहिल्या विश्वविद्यालय का यह प्रयास सराहनीय है। आशा है कि इस संगोष्ठी के निष्कर्ष पत्रकारिता के विद्यार्थी अपने जीवन में उतारेंगे। कार्यक्रम को बैंगलोर की प्रोफेसर डॉ. उर्मिला पोरवाल, डॉ. सोनाली नागुंदे, श्री एम.एल.गुप्ता और श्री मनोज कुमार ने भी सम्बोधित किया। इस अवसर पर बड़ी संख्या में पत्रकारिता के विद्यार्थी मौजूद थे।



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