व्यक्ति को शांत, सुशील जीवन जीना है तो अशुभ कर्मों सें बचना चाहिए-मुनिश्री
ग्वालियर- व्यक्ति शुभ योग में जिए तो पाप क्रम का बंधन नहीं होता है। अशुभ योग से पाप कर्मों का बंधन होता है। इसलिए व्यक्ति को शांत, सुशील जीवन जीना है तो अशुभ कर्मों सें बचना चाहिए। कहा कि आगमों में आठ कर्मों की व्याख्या आती है। इसमें मोहनीय कर्म से सबसे ज्यादा अशुभ कर्मों का बंधन होता है। अब मोह को कम करने का प्रयास करना चाहिए। यह बात मुनिश्री संस्कार सागर महाराज ने आज षुक्रवार को नई सड़क स्थित चंपाबाग जैन धर्मषाला में धर्मसभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किए।
मुनिश्री ने कहा कि दो प्रकार का धर्म बताया गया है। इसमें आध्यात्मिक धर्म एवं सांसारिक धर्म, आध्यात्मिक धर्म उत्कृष्ट धर्म है। क्योंकि इससे परम सुखों की प्राप्ति होती है तथा मोक्ष की ओर प्रस्थान होता है। कहा कि जहां संतों साध्वियों का आगमन होता है वहां पर भगवान की वाणी सुनने का लाभ होता है। जिनके पुण्य का उदय होता है यानि पुण्य प्रबल होते हैं वे ही भगवान की वाणी सुन पाते हैं। भगवान की वाणी, श्रद्धा का होना ही दुर्लभ होता है। वाणी तो सुन ली पर श्रद्धा नहीं की तो उनका सुनना भी व्यर्थ चला जाता है। उन्होंने कहा कि भगवान अ¨हसा, संयम और तप इन तीन चीजों में धर्म बताया जाता है। यदि हम इनको अपने जीवन में उतारने का प्रयास करते हैं तो हम अपने मनुष्य जीवन को उज्ज्वल बना सकते हैं।
प्रवचनो से पहले मुनिश्री के चरणो में पंडित चंद्रा प्रकाष जैन, पंडित सुनील भाड़री, चातुर्मास संयोजक नीरज जैन, सुनील कासलीवाल, प्रवीण गंगवाल, धर्म वरैया, सुनील भौंच, अजय छाबड़, आंनद जैन, अजय कागदी, अरूण गोधा, सुरेंद्र पाड्या, संजय बाडजात्या, संजीव जैन, प्रवक्ता सचिन जैन एवं सामूहिक रूप महिलाओ ने श्रीफल चढा़कार आर्षिवाद लिया।











