पितरों को समर्पित श्राद्ध पक्ष 13 से 28 सितंबर तक

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 पितरों को समर्पित श्राद्ध पक्ष  13 से 28 सितंबर तक 
20 साल बाद बन रहा  सर्वपितृ अमावस्या पर शनिश्चरी का संयोग
50 साल बाद जब श्राद्ध पक्ष में किसी एक दिन कोई श्राद्ध नहीं

ग्वालियर। श्राद्ध की महिमा एवं विधि का वर्णन विष्णु, वायु, वराह, मत्स्य आदि पुराणों एवं महाभारत, मनुस्मृति आदि शास्त्रों में भी मिलता है। कन्या राशि में सूर्य के आने पर श्राद्ध पक्ष प्रारंभ होता है। श्राद्ध पक्ष श्रद्धा का प्रतीक है। श्राद्ध पक्ष में पित्तर धरती पर आते हैं।
शास्त्रानुसार पूर्वजों की आत्मा की तृप्ति के लिए श्रद्धा के साथ किया जाने वाला कर्म श्राद्ध कहलाता है। पित्तर प्रसन्न होकर उन्हें यश, वैभव, कीर्ति, सुख-समृद्धि, आरोग्य, पुत्र-पोत्रादि का आशीर्वाद देते हैं। श्राद्ध पक्ष में ब्राह्मण भोजन, गऊ ग्रास व कौए को भोजन कराने का विशेष महत्व है।  भाद्रपद मास की पूर्णिमा 13 सितंबर को है और । श्राद्ध पक्ष का समापन 28 सितंबर को शनिश्चरी अमावस्या के संयोग में होगा। इस अवधि में शुभ व मांगलिक कार्य नहीं होंगे। इस दौरान 16 सितंबर को किसी भी तिथि का श्राद्ध नहीं है। ऐसा करीब 50 साल बाद हुआ है, जब श्राद्ध पक्ष में किसी एक दिन कोई श्राद्ध नहीं है।  16 सितंबर को दोपहर 2.36 बजे तक दोयज तिथि है। इसके बाद तीज तिथि आएगी। दोयज का श्राद्ध 15 सितंबर को होगा। शास्त्रानुसार सूर्य उदय के समय की तिथि मानी जाती है। इस कारण तीज का श्राद्ध 17 सितंबर को होगा।  जिसमें प्रतिपदा का श्राद्ध व तर्पण शुरू होगा। यह पखवारा 15 दिनों तक चलेगा। इसकी समाप्ति 28 सितम्बर की रात 12 बजकर 20 मिनट पर होगी। 15 दिन तक चलने वाले पितृ पक्ष के आखिरी दिन अमावस्या को सर्व पितृ विसर्जन किया जाएगा। इस बार सर्वपितृ अमावस्या पर शनिश्चरी का संयोग 20 साल बाद बन रहा है। भाद्रपद मास की पूर्णिमा से श्राद्ध पक्ष का आरंभ होगा। हालांकि पक्षीय गणना से अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से पितृ पक्ष बताया गया है। चूंकि पंचागीय गणना में मास का आरंभ पूर्णिमा से होता है। इसलिए पूर्णिमा श्राद्ध पक्ष का पहला दिन माना गया है। ज्योतिषियों के अनुसार शततारका (शतभिषा) नक्षत्र में शुरू हो रहे पितृ आराधना के पर्व में श्राद्ध करने से सौ प्रकार के तापों से मुक्ति मिलेगी। इसके बाद पक्ष काल के 15 दिन को जो?कर 16 श्राद्ध की मान्यता है। इस बार पूर्णिमा पर 13 सितंबर शुक्रवार को शततारका (शतभिषा) नक्षत्र,धृति योग,वणिज करण एवं कुंभ राशि के चंद्रमा की साक्षी में श्राद्ध पक्ष का आरंभ हो रहा है। शास्त्रीय गणना से देखें तो पूर्णिमा तिथि के स्वामी चंद्रमा हैं। शततारका नक्षत्र के स्वामी वरुण देव तथा धृति योग के स्वामी जल देवता हैं। पितृ जल से तृप्त होकर सुख-समृद्धि तथा वंश वृद्धि का आशीर्वाद देते हैं। इसलिए श्राद्ध पक्ष की शुरुआत में पंचांग के पांच अंगों की स्थिति को अतिविशिष्ट माना जा रहा है। श्राद्ध पक्ष में श्राद्धकर्ता को पितरों के निमित्त तर्पण पिंडदान करने से लौकिक जगत के 100 प्रकार के तापों से मुक्ति मिलेगी। वहीं वणिज करण की स्वामिनी माता लक्ष्मी हैं। ऐसे में विधि पूर्वक श्राद्ध करने से परिवार में माता लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होगी। श्राद्ध पक्ष का आरंभ शततारका नक्षत्र में हो रहा है। नक्षत्र मेखला की गणना से देखें तो शततारका के तारों की संख्या 100 है। इसकी आकृति वृत्त के समान है। यह पंचक के नक्षत्र की श्रेणी में आता है। यह शुक्ल पक्ष में पूर्णिमा के दिन विद्यमान है। पितृ पक्ष शुरू होने में करीब अभी  पांच दिन का वक्त है। 

पितृ पक्ष में कौए का महत्व 
 कौओं को पित्तर रूप में माना जाता है। कौए का रंग काला होता है, जो राहु-केतु का रूप माना जाता है। राहु-केतु के कारण ही पितृ दोष लगता है, इसलिए कोए को भोजन कराने से पितरों को शांति मिलती और पितृ तृप्त होते हैं। रामचरित मानस में भी लेख है कि इंद्र के पुत्र जयंत ने कौए का रूप धारण कर सीता की शक्ति परीक्षा ली। उसी समय भगवान राम ने उसकी एक आंख छीन ली थी और श्राप दिया कि तुम्हें सिर्फ श्राद्ध पक्ष में स्वच्छ भोजन खाने को मिलेगा। 

कौन सा श्राद्ध कब 

13 सितंबर-पूर्णिमा का श्राद्ध। 

14 सितंबर-प्रतिपदा का श्राद्ध। 

15 सितंबर-दोयज का श्राद्ध। 

16 सितंबर-कोई श्राद्ध नहीं है। 

17 सितंबर-तीज का श्राद्ध। 

18 सितंबर-चतुर्थी का श्राद्ध। 

19 सितंबर-पंचमी का श्राद्ध। 

20 सितंबर-छठ का श्राद्ध। 

21 सितंबर-सप्तमी का श्राद्ध। 

22 सितंबर-अष्टमी का श्राद्ध। 

23 सितंबर-नवमी का श्राद्ध। 

24 सितंबर-दशमी का श्राद्ध। 

25 सितंबर-एकादशी व द्वादशी। 

26 सितंबर-त्रियोदशी का श्राद्ध। 

27 सितंबर-चतुर्दशी का श्राद्ध। 

28 सितंबर-अमावस्या का श्राद्ध। 



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