मोदी कैबिनेट ने अध्यादेश को दी मंजूदी , तीन तलाक अब होगा अपराध

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मोदी कैबिनेट ने अध्यादेश को दी मंजूदी 
तीन तलाक अब होगा अपराध
नई दिल्ली । मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक से आजादी दिलाने मोदी कैबिनेट ने बुधवार को तीन तलाक पर अध्यादेश को मंजूरी दे दी है। कैबिनेट की मंजूरी के बाद अब इस पर राष्ट्रपति की मुहर लगनी बाकी है, जिसके बाद यह लागू हो जाएगा। दरअसल, तीन तलाक विधेयक लोकसभा से पारित हो चुका है, लेकिन राज्यसभा में लंबित है। इसलिए सरकार ने अध्यादेश को मंजूरी दे दी। माना जा रहा है कि अध्यादेश में वही प्रावधान होंगे जो प्रस्तावित कानून और लोकसभा से पास हो चुके विधेयक में हैं। यानी तीन तलाक गैर जमानती अपराध होगा और उसमें दोषी को तीन साल तक के कारावास की सजा हो सकेगी। अपराध गैर जमानती और संज्ञेय होगा। इसके अलावा, तीन तलाक से पीडि़त महिला मजिस्ट्रेट की अदालत में गुजारा-भत्ता और नाबालिग बच्चों की कस्टडी की मांग कर सकती है। गौरतलब है कि राज्यसभा में कांग्रेस और विपक्षी दलों के यू-टर्न लेने से बिल अधर में अटक हुआ है। शीतकालीन सत्र में बिल पास नहीं हो सका था। वहीं इस फैसले के बाद केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि कि हमारे सामने 430 तीन तलाक के मामले आए हैं, जिनमें से 229 सुप्रीम कोर्ट के फैसले से पहले और 201 सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद के हैं। हमारे पास तीन तलाक के मामलों के पुख्ता सबूत भी हैं। इनमें सबसे अधिक मामले (120) उत्तर प्रदेश से हैं। उन्होंने कांग्रेस को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि हमने इसे बार-बार पास करवाने की कोशिश की। करीब 5 बार कांग्रेस को समझाने की कोशिश भी की लेकिन वोटबैंक के चक्कर में कांग्रेस ने इसे पास नहीं करने दिया गया। मोदी कैबिनेट ने इस बिल में 9 अगस्त को तीन संशोधन किए थे, जिसमें ज़मानत देने का अधिकार मजिस्ट्रेट के पास होगा और कोर्ट की इजाज़त से समझौते का प्रावधन भी होगा। अब इस बिल को मंजूरी के लिए राष्?ट्रपति के पास भेज दिया है। मोदी कैबिनेट ने तीन तलाक विधेयक पर अध्यादेश लाया है। अब इसे 6 महीने के भीतर दोनों सदनों से पारित करनावा होगा।
पहला संशोधन: इसमें पहले का प्रावधान था कि इस मामले में पहले कोई भी केस दर्ज करा सकता था। इतना ही नहीं पुलिस खुद की संज्ञान लेकर मामला दर्ज कर सकती थी लेकिन अब नया संशोधन ये कहता है कि अब पीडि़ता, सगा रिश्तेदार ही केस दर्ज करा सकेगा।
दूसरा संशोधन: इसमें पहले का प्रावधान था कि पहले गैर जमानती अपराध और संज्ञेय अपराध था। पुलिस बिना वारंट के गिरफ्तार कर सकती थी लेकिन अब नया संशोधन यह कहता है कि मजिस्ट्रेट को ज़मानत देने का अधिकार होगा। 
तीसरा संशोधन: इसमें पहले का प्रावधान था कि पहले समझौते का कोई प्रावधान नहीं था। लेकिन अब नया संशोधन ये कहता है कि मजिस्ट्रेट के सामने पति-पत्नी में समझौते का विकल्प भी खुला रहेगा



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