नवमी पर की आंवले के वृक्ष की पूजा-अर्चना
संतान प्राप्ति और सलामती के लिए महिलाओं ने रखा व्रत
ग्वालियर। आंवला नवमी पर महिलाओं ने संतान प्राप्ति के साथ ही उसकी सलामती के लिए व्रत रखकर आंवले के वृक्ष की पूजा-अर्चना की। इस मौके पर कुछ जगह महिलाएं सामूहिक रूप से उस स्थान पर पहुंची जहां कि आंवले का पेड़ लगा हुआ था और यहां पर विधि विधान से पूजा की। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को आंवला नवमी मनाई जाती है, इसेे अक्षय नवमी भी कहा जाता है। इस दिन आंवला के पेड़ के नीचे बैठकर भोजन करने का भी चलन है।
क्या है महत्व
आंवला नवमी के दिन आंवले के वृक्ष के नीचे भोजन बनाने और भोजन करने का विशेष महत्व है। इस दिन ही भगवान विष्णु ने कुष्माण्डक दैत्य को मारा था। इस दिन ही भगवान श्रीकृष्ण ने कंस वध से पहले तीन वन की परिक्रमा की थी। आज भी लोग अक्षय नवमी पर मथुरा-वृंदावन की परिक्रमा करते हैं। संतान प्राप्ति के लिए इस नवमी पर पूजा अर्चना का विशेष महत्व है। इस व्रत में भगवान श्री हरि का स्मरण करते हुए रात्रि जागरण भी किया जाता है।
आंवला नवमी पूजा करने की विधि
महिलाएं आंवला नवमी के दिन स्नान आदि करके किसी आंवला वृक्ष के समीप जाएं। उसके आसपास साफ-सफाई करके आंवला वृक्ष की जड़ में शुद्ध जल अर्पित करें। फिर उसकी जड़ में कच्चा दूध डालें। पूजन सामग्रियों से वृक्ष की पूजा करें और उसके तने पर कच्चा सूत या मौली 8 परिक्रमा करते हुए लपेटें। कुछ जगह 108 परिक्रमा भी की जाती है। इसके बाद परिवार और संतान की सुख-समृद्धि की कामना करके वृक्ष के नीचे ही बैठकर परिवार, मित्रों सहित भोजन किया जाता है।











